लघु क्षिप्रमरं द्रुतम्
इत्यमरः (अमरकोशः १.१.७९ ) । हस्तेन शुण्डादण्डेन। हस्तो नक्षत्रभेदे स्यात्करेभकरयोरपि
इति विश्वः। सशब्दं सघोषं बृहतस्तरंगान्भिन्दन्विदारयंस्तीराभिमुखः स गजः वारी गजबन्धनस्थानम्। वारी तु गजबन्धनी
इति यादवः। वार्या अर्गलाया विष्कम्भस्य भङ्गे भञ्जने प्रवृत्त इव बभौ ॥
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सं | हा | र | वि | क्षे | प | ल | घु | क्रि | ये | ण |
ह | स्ते | न | ती | रा | भि | मु | खः | स | श | ब्दम् |
ब | भौ | स | भि | न्द | न्बृ | ह | त | स्त | रं | गा |
न्वा | र्य | र्ग | ला | भ | ङ्ग | इ | व | प्र | वृ | त्तः |