सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
इत्थमिति॥ अग्रजन्मा ब्राह्मणः। अग्रजन्मा द्विजे श्रेष्ठे भ्रातरि ब्रह्मणि स्मृतः
इति विश्वः। इत्थं राज्ञ आशिषं प्रयुज्य दत्त्वा गुरोः सकाशं समीपं प्रतीयाय प्राप। राजाऽपि। जीवलोको जीवसमूहः। जीवः प्राणिनि गीष्पतौ
इति विश्वः। अर्गादालोकं प्रकाशमिव। चैतन्यम्
इति पाठे ज्ञानम्। तस्मादृषेराशु सुतं लेभे प्राप ॥
छन्दः
इन्द्रवज्रा [११: ततजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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इ | त्थं | प्र | यु | ज्या | शि | ष | म | ग्र | ज | न्मा |
रा | ज्ञे | प्र | ती | या | य | गु | रोः | स | का | शम् |
रा | जा | पि | ले | भे | सु | त | मा | शु | त | स्मा |
दा | लो | क | म | र्का | दि | व | जी | व | लो | कः |
त | त | ज | ग | ग |