द्विजराजः शशधरो नक्षत्रेशः क्षपाकरैः
इत्यमरः (अमरकोशः १.३.१७ ) । तस्मात्सोमो राजा नो ब्राब्मणानाम्
इति श्रुतेः। द्विजराजकान्तित्वेनार्थावाप्तिवैराग्यं वारयति। एनसः पापान्निवृत्तेन्द्रियवृत्तिर्यस्य स जगदेकनाथो रघुर्वेदविदां वरेण श्रेष्ठेन द्विजेन कौत्सेन। इत्थमावेदितो निवेदितः सन्। एनं कौत्सं भूयः पुनर्जगाद ॥
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इ | त्थं | द्वि | जे | न | द्वि | ज | रा | ज | का | न्ति |
रा | वे | दि | तो | वे | द | वि | दां | व | रे | ण |
ए | नो | नि | वृ | त्ते | न्द्रि | य | वृ | त्ति | रे | नं |
ज | गा | द | भू | यो | ज | ग | दे | क | ना | थः |