ग्लाजिस्थश्च ग्स्नुः
(अष्टाध्यायी ३.२.१३९ ) इति ग्स्नुप्रत्ययः। स रघुरितीत्थं दिशो जित्वा रथैरुद्धतं रजश्छत्रशून्येषु। रघोरेकच्छत्रकत्वादिति भावः। राज्ञां मौलिषु किरीटेषु। मौलिः किरिटे धम्मिल्लेचूडाकंकेलिमूर्धजे
इति हैमः। विश्रामयन्। संक्रामयन्नित्यर्थः। न्यवर्तत निवृत्तः ॥
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इ | ति | जि | त्वा | दि | शो | जि | ष्णु |
र्न्य | व | र्त | त | र | थो | द्ध | तम् |
र | जो | वि | श्रा | म | य | न्रा | ज्ञां |
छ | त्र | शू | न्ये | षु | मौ | लि | षु |