मुरवीमारुतोद्भूतम्
इति केचित्पठन्ति। कैतकं केतकसंबन्धि रजस्तद्योधवारबाणानां रघुभटकञ्चुकानाम्, कञ्चुको वारबाणोऽस्त्त्री
इत्यमरः (अमरकोशः २.६.१४० ) । अयत्नपटवासतामयत्नसिद्धवस्त्त्रवासनाद्रव्यत्वमगमत्। पिष्टातः पटवासकः
इत्यमरः (अमरकोशः २.६.१४० ) ॥
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मु | र | ला | मा | रु | तो | द्धू | त |
म | ग | म | त्कै | त | कं | र | जः |
त | द्यो | ध | वा | र | बा | णा | ना |
म | य | त्न | प | ट | वा | स | ताम् |