सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
भयेति॥ तेन रघुणा भयेनोत्सृष्टविभूषाणां परिहृतभूषणानां केरलयोषितां केरलाङ्गनानामलकेषु चमूरेणुः चूर्णस्य सेनारजश्चूर्णस्य कुङ्कुमादिरजसः प्रतिनिधीकृतः। एतेन योषितां पलायनं चमूनां च तदनुधावनं ध्वन्यते ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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भ | यो | त्सृ | ष्ट | वि | भू | षा | णां |
ते | न | के | र | ल | यो | षि | ताम् |
अ | ल | के | षु | च | मू | रे | णु |
श्चू | र्ण | प्र | ति | नि | धी | कृ | तः |