इत्यमरः। स्तनपक्षे, -प्रान्तेषु व्याप्तचन्दनानुलेपौ। तस्या दक्षिणस्या दिशः स्तनाविव स्थितौ मलयदर्दुरौ नाम शैलौ यथाकामं यथेच्छं निर्विश्योपभुज्य।
निर्वेशो भृतिभोगयोःइत्यमरः (अमरकोशः ३.३.२२६ ) । उदकान्यस्य सन्तीत्युदन्वानुदधिः।
उदन्वानुदधौ चइति (अष्टाध्यायी ८.२.१३ ) निपातः। उदन्वता दूरान्मुक्तं दूरतस्त्यक्तम्।
स्तोकान्तिकदूरार्थिकृच्छ्राणि क्तेन(अष्टाध्यायी २.१.३९ ) इति समासः।
पञ्चम्याः स्तोकादिभ्यः` (अष्टाध्यायी ६.३.३ ) इत्यलुक्। स्रस्तांशुकं मेदिन्या नितम्बमिव स्थितं सह्यं सह्याद्रिमलङ्घयत् प्राप्तोऽतिक्रान्तो वा ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|---|---|---|---|---|---|---|
अ | स | ह्य | वि | क्र | मः | स | ह्यं |
दू | रा | न्मु | क्त | मु | द | न्व | ता |
नि | त | म्ब | मि | व | मे | दि | न्याः |
स्र | स्तां | शु | क | म | ल | ङ्घ | यत् |