भीत्रार्थानां भयहेतुः
(अष्टाध्यायी १.४.२५ ) इत्यपादानत्वात्पञ्चमी। सिन्धुरयान्नदीवेगादिव सुह्नैः सुह्नदेशीयैः। सुह्नादयः शब्दा जनपदवचनाः क्षत्रियमाचक्षते। वैतसीं वेतसः संबन्धिनीं वृत्तिम्। प्रणतिमित्यर्थः। आश्रित्य। आत्मा संरक्षितः। अत्र कौटिल्यः-बलीयसाभियुक्तो दुर्बलः सर्वत्रानुप्रणतो वेतसं धर्ममातिष्ठेत्
इति ॥
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अ | न | म्रा | णां | स | मु | द्ध | र्त |
स्त | स्मा | त्सि | न्धु | र | या | दि | व |
आ | त्मा | सं | र | क्षि | तः | सु | ह्यै |
र्वृ | त्ति | मा | श्रि | त्य | वै | त | सीम् |