सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
स इति॥ गुप्तौ मूलं स्वनिवासस्थानं प्रत्यन्तः प्रान्तदुर्गं च येन स गुप्तमूलप्रत्यन्तः। शुद्धपार्ष्णिरुद्धृतपृष्टशत्रुः सेनया रक्षितपृष्ठदेशो वा। अयान्वितः शुभदैवान्वितः। अयः शुभावहो विधिः
इत्यमरः। स रघुः षड्विधं मौलभृत्यादिरूपं बलं सैन्यम्। मौलं भृत्यः सुहृच्छ्रेणी द्विषदाटविकं बलम्
इति कोशः। आदाय दिशां जिगीषया जेतुमिच्छया प्रतस्थे चचाल ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | गु | प्त | मू | ल | प्र | त्य | न्तः |
शु | द्ध | पा | र्ष्णि | र | या | न्वि | तः |
ष | ड्वि | धं | ब | ल | मा | दा | य |
प्र | त | स्थे | दि | ग्जि | गी | ष | या |