उदि कूले रुजिवहोः
(अष्टाध्यायी ३.२.३१ ) इति खश्प्रत्ययः। अरुर्द्विषद्-
(अष्टाध्यायी ६.३.६७ ) इत्यादिना मुमागमः। महन्त उक्षाणो महोक्षाः। अचतुर-
(अष्टाध्यायी ५.४.७७ ) इत्यादिना निपातनादकारान्तः। लीलाखेलं विलाससुभगं तस्य रघोरुत्साहवतो वपुष्मतः परभञ्जकस्य विक्रमं शौर्यम्। अनुप्रापुरनुचक्रुः॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|---|---|---|---|---|---|---|
म | दो | द | ग्राः | क | कु | द्म | न्तः |
स | रि | तां | कू | ल | मु | द्रु | जाः |
ली | ला | खे | ल | म | नु | प्रा | पु |
र्म | हो | क्षा | स्त | स्य | वि | क्र | मम् |