कुमुद्वान्कुमुदप्राये
इत्यमरः (अमरकोशः २.१.१० ) । कुमुदनडवेतसेभ्यो ड्यतुप्
(अष्टाध्यायी ४.२.८७ ) । तेषु। कुमुदप्रायेष्वित्यर्थः। वारिषु च तदीयानां रघुसंबन्धिनां यशसां विभूतयः संपदः पर्यस्ता इव प्रसारिताः किम् ? इत्युत्प्रेक्षा। अन्यथा कथमेषां धवलिमेति भावः॥
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हं | स | श्रे | णी | षु | ता | रा | सु |
कु | मु | द्व | त्सु | च | वा | रि | षु |
वि | भू | त | य | स्त | दी | या | नां |
प | र्य | स्ता | य | श | सा | मि | व |