सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
दिनेष्विति॥ दिनेषु दोहददिवसेषु गच्छत्सु सत्सु नितान्तपीवरमतिस्थूलम्। आ समन्तान्नीले मुखे चूचुके यस्य तत्। तदीयं स्तनद्वयम्। भ्रमरैरभिलीनयोरभिव्याप्तयोः सुजातयोः सुन्दरयोः पङ्कजकोशयोः पद्ममुकुलयोः श्रियं तिरश्चकार। अत्र वाग्भटः(अ.हृ.शा १।५१)-अम्लेष्टता स्तनौ पीनौ श्वेतान्तौ कृष्णचूचुकौ
इति ॥
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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दि | ने | षु | ग | च्छ | त्सु | नि | ता | न्त | पी | व | रं |
त | दी | य | मा | नी | ल | मु | खं | स्त | न | द्व | यम् |
ति | र | श्च | का | र | भ्र | म | रा | भि | ली | न | योः |
सु | जा | त | योः | प | ङ्क | ज | को | श | योः | श्रि | यम् |
ज | त | ज | र |