सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तदिति॥ हे मघवन्! तत्तस्मात्कारणात्। महाक्रतोरश्वमेधस्याग्र्यं श्रेष्ठमङ्गं साधनममुं तुरंगं प्रतिमोक्तुं प्रतिदातुमर्हसि। तथा हि-श्रुतेः पथो दर्शयितारः सन्मार्गप्रदर्शका ईश्वरा महान्तो मलीमसां मलिनां पद्धतिं मार्गं नाददते न स्वीकुर्वते, असन्मार्गं नावलम्बन्त इत्यर्थः। मलीमसं तु मलिनं कञ्चरं मलदूषितम्
इत्यमरः॥
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
---|
त | द | ङ्ग | म | ग्र्यं | म | घ | व | न्म | हा | क्र | तो |
र | मुं | तु | रं | गं | प्र | ति | मो | क्तु | म | र्ह | सि |
प | थः | श्रु | ते | र्द | र्श | यि | ता | र | ई | श्व | रा |
म | ली | म | सा | मा | द | द | ते | न | प | द्ध | तिम् |
ज | त | ज | र |