सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
विषादेति॥ तत् कुमारस्य सैन्यं सेना सपदि। विषाद इष्टनाशकृतो मनोभङ्गः। तदुक्तम्-विषादश्चेतसो भङ्ग उपायाभावनाशयोः
इति। तेन लुप्ता प्रतिपत्तिः कर्तव्यज्ञानं यस्य तत्तथोक्तम्। विस्मितमश्वनाशस्याकस्मिकत्वादाश्चर्याविष्टं सत्। स्थितं तस्थौ। अथ श्रुतप्रभावा यदृच्छया स्वेच्छयागता। रघोः स्वप्रसादलब्धत्वादनुजिघृक्षयेति भावः। नन्दिनी नाम वसिष्ठधेनुश्च ददृशे। द्वौ चकारावविलम्बसूचकौ ॥
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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वि | षा | द | लु | प्त | प्र | ति | प | त्ति | वि | स्मि | तं |
कु | मा | र | सै | न्यं | स | प | दि | स्थि | तं | च | तत् |
व | सि | ष्ठ | धे | नु | श्च | य | दृ | च्छ | या | ग | ता |
श्रु | त | प्र | भा | वा | द | दृ | शे | ऽथ | न | न्दि | नी |
ज | त | ज | र |