पोतः पाकोऽर्भको डिम्भः पृथुकः शावकः शिशुः
इत्यमरः (अमरकोशः २.५.४० ) । धात्र्योपमात्रा। छात्रीजनन्यामलकीवसुमत्युपमातृषु
इति विश्वः। प्रथममुदितमुपदिष्टं वच उवाच। तदीयामङ्गुलिमवलम्ब्य ययौ च। प्रणिपातस्य शिक्षयोपदेशेन नम्रोऽभूञ्च। इति यत्तेन पितुर्मुदं ततान ॥
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उ | वा | च | धा | त्र्या | प्र | थ | मो | दि | तं | व | चो |
य | यौ | त | दी | या | म | व | ल | म्ब्य | चा | ङ्गु | लिम् |
अ | भू | ञ्च | न | म्रः | प्र | णि | पा | त | शि | क्ष | या |
पि | तु | र्मु | दं | ते | न | त | ता | न | सो | ऽर्भ | कः |
ज | त | ज | र |