सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अथेति॥ अथ भूतेश्वरस्य पार्श्ववर्त्यनुचरः स सिंहो गिरेर्गह्वराणां गुहानाम्। देवखातबिले गुहा। गह्वरम्
इत्यमरः। अन्धकारं ध्वान्तं दंष्ट्रामयूखैः शकलानि खण्डानि कुर्वन्, निरस्यन्नित्यर्थः। किंचिद्विहस्य। अर्थपतिं नृपं भूयो बभाषे। हासकारणम् अल्पस्य हेतोर्बहु हातुमिच्छन्
(२।४७) इति वक्ष्यमाणं द्रष्टव्यम्॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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अ | था | न्ध | का | रं | गि | रि | ग | ह्व | रा | णां |
दं | ष्ट्रा | म | यू | खैः | श | क | ला | नि | कु | र्वन् |
भू | यः | स | भू | ते | श्व | र | पा | र्श्व | व | र्ती |
किं | चि | द्वि | ह | स्या | र्थ | प | तिं | ब | भा | षे |