कण्ड्वादिभ्यो यक्
(अष्टाध्यायी ३.२.६१ ) इति यक। ततः शानच्। वन्यद्विपेनास्य देवदारोस्त्वगुन्मथिता अथाद्रेस्तनया गौरी। असुरास्त्त्रैरालीढं क्षतम्। सेनां नयत्तीति सेनानीः स्कन्दः। पार्वतीनन्दनः स्कन्दः सेनानीः
इत्यमरः (अमरकोशः १.१.४९ ) । सत्सूद्विष-
(अष्टाध्यायी ३.१.२७ ) इत्यादिना क्विप्। तमिव। एवं देवदारुं शुशोच ॥
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क | ण्डू | य | मा | ने | न | क | टं | क | दा | चि |
द्व | न्य | द्वि | पे | नो | न्म | थि | ता | त्व | ग | स्य |
अ | थै | न | म | द्रे | स्त | न | या | शु | शो | च |
से | ना | न्य | मा | ली | ढ | मि | वा | सु | रा | स्त्त्रैः |