सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
वीरेति॥ वीरासनैर्जयसाधनैः। ध्यानं जुषन्ते सेवन्त इति ध्यानजुषः। तेषां तैरुपविश्य ध्यायतामृषीणां संबन्धिनः समध्यासितवेदिमध्याः। इदं वीरासनस्थानीयम्। अमी शाखिनोऽपि निवाते निष्कम्पतया योगाधिरूढा इव ध्यानभाज इव विभान्ति। ध्यायन्तोऽपि निश्चलाङ्गा भवन्ति। वीरासने वसिष्ठः-एकपादमथैकस्मिन्विन्यस्योरूणि संस्थितम्। इतरस्मिंस्तथा चान्यं वीरासनमुदाहृतम्॥
इति ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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वी | र | स | नै | र्ध्या | न | जु | षा | मृ | षी | णा |
म | मी | स | म | ध्या | सि | त | वे | दि | म | ध्याः |
नि | वा | त | नि | ष्क | म्प | त | या | वि | भा | न्ति |
यो | गा | धि | रू | ढा | इ | व | शा | खि | नो | ऽपि |