दिक्संखअये संज्ञायाम्
(अष्टाध्यायी २.१.५० ) इति तत्पुरुषसमासः। तेषां हस्तौरुद्धृतानि हेमपद्मानि यस्यास्तां त्र्यम्बकमौलिमालां हरशिरःस्रजं त्रिस्रोतप्तं भागीरथीं तपोधनानामृषीणामभिषेकाय स्नानाय प्रवर्तयामास प्रवाहयामास। किलेत्यैतिह्ये ॥
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अ | त्रा | भि | षे | का | य | त | पो | ध | ना | नां |
स | प्त | र्षि | ह | स्तो | द्धृ | त | हे | म | प | द्माम् |
प्र | व | र्त | या | मा | स | कि | ला | न | सू | या |
त्रि | स्रो | त | सं | त्र्य | म्ब | क | मौ | लि | मा | लाम् |