अग्नित्रयमिदं त्रेता
इत्यमरः (अमरकोशः २.७.२२ ) । पृषोदरादित्वादेत्वम्। त्रेताग्नेर्धूमाग्निमिदं घ्रात्वाऽऽघ्राय रजसो गुणाद्विमुक्तो मे मम। आत्माऽन्तःकरणं लघिमानं लघुत्वगुणं समाश्नुते प्राप्नोति ॥
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त्रे | ता | ग्नि | धू | मा | ग्र | म | नि | न्द्य | की | र्ते |
स्त | स्ये | द | मा | क्रा | न्त | वि | मा | न | मा | र्गम् |
घ्रा | त्वा | ह | वि | र्ग | न्धि | र | जो | वि | मु | क्तः |
स | म | श्नु | ते | मे | ल | घि | मा | न | मा | त्मा |