पर्णशालोटजोऽस्त्रियाम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.२.६ ) । चिरोैज्झितानि। राक्षसभयादित्यर्थः। आश्रममण्डलान्याश्रमविभागान्। यथास्वं स्वमनतिक्रम्य। अध्यासतेऽधितिष्ठन्ति॥
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अ | मी | ज | न | स्था | न | म | पो | ढ | वि | घ्नं |
म | त्वा | स | मा | र | ब्ध | न | वो | ट | जा | नि |
अ | ध्या | स | ते | ची | र | भृ | तो | य | था | स्वं |
चि | रो | ज्झि | ता | न्या | श्र | म | म | ण्ड | ला | नि |