सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
ससत्त्वमिति॥ अमी तिमयो मत्स्यविशेषाः। तदुक्तम्-अस्ति मत्स्यस्तिमिर्नाम शतयोजनमायतः
इति। विवृताननत्वाद्व्यात्तमुखत्वाद्धेतोः। आननविवृत्येत्यर्थः। ससत्त्वं मत्स्यादिप्राणिसहितं नदीमुखाम्भ आदाय संमीलयन्तश्चञ्चुपुटानि संघट्टयन्तः सन्तः सरन्ध्रैः शिरोभिर्जलप्रवाहानूर्ध्वं वितन्वन्ति। जलयन्त्रक्रीडासमाधिर्व्यज्यते ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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स | स | त्त्व | मा | दा | य | न | दी | मु | खा | म्भः |
सं | मी | ल | य | न्तो | वि | वृ | ता | न | न | त्वात् |
अ | मी | शि | रो | भि | स्ति | म | यः | स | र | न्ध्रै |
रू | र्ध्वं | वि | त | न्व | न्ति | ज | ल | प्र | वा | हान् |