सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
ज्येष्ठेति॥ पूर्वं ज्येष्ठाभिगमनात्तेन लक्ष्मणेनाष्यनभिनन्दिता नाङअगीकृता भूयो रामाश्रया सा राक्षसी। उभे कूले भजतीत्युभयकूलभाक् नदीवाभूत् सा हि यातायाताभ्यां पर्यायेण कूलद्वयगामिनी नदीसदृश्यभूदित्यर्थः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ज्ये | ष्ठा | भि | ग | म | ना | त्पू | र्वं |
ते | ना | प्य | न | भि | न | न्दि | ताम् |
सा | ऽभू | द्रा | मा | श्र | या | भू | यो |
न | दी | वो | भ | य | कू | ल | भाक् |