सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
राम इति॥ सानुजः शान्तो रामोऽपि वैदेह्या सह वने वन्येन वनभवेन कन्दमूलादिना वर्तयन् वृत्तिं कुर्वञ्जीवन् वृद्धेक्ष्वाकूणां व्रतं वनवासात्मकं युवा यौवनस्थ एव चचार ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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रा | मो | ऽपि | स | ह | वै | दे | ह्या |
व | ने | व | न्ये | न | व | र्त | यन् |
च | चा | र | सा | नु | जः | शा | न्तो |
वृ | द्धे | क्ष्वा | कु | व्र | तं | यु | वा |