पलितं जरसा शौक्ल्यं केशादौ
इत्यमरः (अमरकोशः २.६.४१ ) । कर्णमूलं कर्णोपकण्ठमागत्य रामे श्रीराज्यलक्ष्मीर्न्यस्यतां निधीयतामिति तमाह। दशरथो बृद्धोऽहम्
इति विचार्य रामस्य यौवराज्याभिषेकं चकाङ्क्षेत्यर्थः ॥
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तं | क | र्ण | मू | ल | मा | ग | त्य |
रा | मे | श्री | र्न्य | स्य | ता | मि | ति |
कै | के | यी | श | ङ्क | ये | वा | ह |
प | लि | त | च्छ | द्म | ना | ज | रा |