सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अथेति॥ अथ मदेन गजगण्डसंचारसंक्रान्तेन गुरुपक्षैर्भारायमाणपक्षैरसिवृन्दैर्लोकपालद्विपानामैरावतादीनां गगनवर्तिनां गण्डभित्तीर्विहायानुगतमनुद्रुतं सुरभि सुगन्धि। सुरभिश्चम्पके स्वर्णे जातीफलवसन्तयोः। गन्धोपले सौरभेय्यां सल्लकीमातृभेदयोः॥ सुगन्धौ च मनोज्ञे च वाच्यवत्सुरभि स्मृतम्।
इति विश्वः। सुरविमुक्तं पुष्पवर्षमुपनत आसन्नो मणिबन्धो राज्याभिषेकसमये भावी यस्य तस्मिन्। पौलस्त्यशत्रो रामस्य मूर्ध्नि पपात। इदमेव राज्याभिषेकसूचकमिति भावः ॥
छन्दः
मालिनी [१५: ननमयय]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | १३ | १४ | १५ |
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अ | थ | म | द | गु | रु | प | क्षै | र्लो | क | पा | ल | द्वि | पा | ना |
म | नु | ग | त | म | लि | वृ | न्दै | र्ग | ण्ड | भि | त्ती | र्वि | हा | य |
उ | प | न | त | म | णि | ब | न्धे | मू | र्ध्नि | पौ | ल | स्त्य | श | त्रोः |
सु | र | भि | सु | र | वि | मु | क्तं | पु | ष्प | व | र्षं | प | पा | त |
न | न | म | य | य |