सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
साधयामीति॥ अहं साधयामि गच्छामि। देवकार्यमुपपादयिष्यतः संपादयिष्यतस्तेऽविघ्नमस्तु विघ्नाभावोऽस्तु। अव्ययं विभक्ति-
(अष्टाध्यायी २.१.६ ) इत्यादिवार्थाभावेऽव्ययीभावः। सह लक्ष्मणेन सलक्ष्मणः। तम्। तेन सहेति तुल्ययोगे
(अष्टाध्यायी २.२.२८ ) इति बहुव्रीहिः। लक्ष्मणाग्रजं राममिति वच ऊचिवानुक्तवान्। ब्रूञः क्वसुः। ऋषिस्तिरोदधेऽन्तर्दधे ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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सा | ध | या | म्य | ह | म | वि | घ्न | म | स्तु | ते |
दे | व | का | र्य | मु | प | पा | द | यि | ष्य | तः |
ऊ | चि | वा | नि | ति | व | चः | स | ल | क्ष्म | णं |
ल | क्ष्म | णा | ग्र | ज | मृ | षि | स्ति | रो | द | धे |
र | न | र | ल | ग |