सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अन्यदेति॥ अन्यदाऽन्यस्मिन्काले जगति राम इत्ययं शब्द उञ्चरितः सन् मामेवागात्। संप्रति त्वय्युदयोन्मुखे सति व्यस्तवृत्तिर्विपरीतवृत्तिः। अन्यगामीति यावत्। स शब्दो मे व्रीडमावहति लज्जां करोति ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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अ | न्य | दा | ज | ग | ति | रा | म | इ | त्य | यं |
श | ब्द | उ | ञ्च | रि | त | ए | व | मा | म | गात् |
व्री | ड | मा | व | ह | ति | मे | स | सं | प्र | ति |
व्या | स्त | वृ | त्ति | रु | द | यो | न्मु | खे | त्व | यि |
र | न | र | ल | ग |