तुमर्थाञ्च-
(अष्टाध्यायी २.३.१५ ) इति चतुर्थी। सहस्रलोचन इन्द्रस्तैजसस्य तेजोमयस्य धनुषः प्रवृत्तय अविर्भावाय तोयदान्भेधानिव गणशः गणान्। संख्यैकवचनाञ्च वीप्सायाम्
(अष्टाध्यायी ५.४.४३ ) इति शस्प्रत्ययः। व्यादिदेश प्रजिघाय ॥
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व्या | दि | दे | श | ग | ण | शो | ऽथ | पा | र्श्व | गा |
न्का | र्मु | का | भि | ह | र | णा | य | मै | थि | लः |
तै | ज | स | स्य | ध | नु | षः | प्र | वृ | त्त | ये |
तो | य | दा | नि | व | स | ह | स्र | लो | च | नः |
र | न | र | ल | ग |