पापं किल्बिषकल्मषम्
इत्यमरः (अमरकोशः १.४.२४ ) । रामपादरजसामनुग्रहः किलप्रसादः किलेति श्रूयते ॥
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प्र | त्य | प | द्य | त | चि | रा | य | य | त्पु | न | |
श्चा | रु | गौ | त | म | व | धूः | श | इ | ला | म | यी |
स्वं | व | पुः | स | कि | ल | कि | ल्बि | ष | च्छि | दां | |
रा | म | पा | द | र | ज | सा | म | नु | ग्र | हः | |
र | न | र | ल | ग |