पत्नीपरिजनादानमूलशापाः परिग्रहाः
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.२५२ ) । अहल्येति यावत्। वासवस्येन्द्रस्य क्षणकलत्रतां ययौ ॥
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तैः | शि | वे | षु | व | स | ति | र्ग | ता | ध्व | भिः |
सा | य | मा | श्र | म | त | रु | ष्व | गृ | ह्य | त |
ये | षु | दी | र्घ | त | प | सः | प | रि | ग्र | हो |
वा | स | व | क्ष | ण | क | ल | त्र | तां | य | यौ |
र | न | र | ल | ग |