सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
यावदिति॥ पार्थिवः पृथिवीश्वरः। तयो रामलक्ष्मणयोर्निर्गमाय निष्क्रमणाय पुरमार्गसंस्क्रियां धूलिसंमार्जनगन्धोदकसेचनपुष्पोपहाररूपसंस्कारं यावदादिशत्याज्ञापयति तावन्मरुत्सखैर्वायुसखैः। अनेन धूमिसंमार्जनं गम्यते। सपुष्पजलवर्षिभिः पुष्पसहितजलवर्षिभिर्घनैः सा मार्गसंस्क्रियाऽऽशु विदधे विहिता। एतेन देवकार्यप्रवृत्तयोर्देवानुकूल्यं सूचितम् ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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या | व | दा | दि | श | ति | पा | र्थि | वा | स्त | यो |
र्नि | र्ग | मा | य | पु | र | मा | र्ग | सं | स्क्रि | याम् |
ता | व | दा | शु | वि | द | धे | म | रु | त्स | खैः |
सा | स | पु | ष्प | ज | ल | व | र्षि | भि | र्घ | नैः |
र | न | र | ल | ग |