सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
रघ्विति॥ रघुवंशस्य प्रदीपेन प्रकाशकेन। अप्रतिमतेजसा तेन रामेण रक्षागृहगताः सूतिकागृहगता दीपाः प्रत्यादिष्टाः प्रतिबद्धा इवाभवन्। महादीपसमीपे नाल्पाः स्फुरन्तीति भावः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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र | घु | वं | श | प्र | दी | पे | न |
ते | ना | प्र | ति | म | ते | ज | सा |
र | क्षा | गृ | ह | ग | ता | दी | पाः |
प्र | त्या | दि | ष्टा | इ | वा | भ | वन् |