आपन्नसत्त्वा स्याद्गुर्विण्यन्तर्वत्नी च गर्भिणी
इत्यमरः (अमरकोशः २.६.२२ ) । अत एव, आपाण्डुरत्विष ईषत्पाण्डुरवर्णास्ताः राजपत्न्यः। अन्तर्गता गुप्ताः फलारम्भाः फलप्रादुर्भावा यासां ताः सस्यानां संपद इव। रेजुर्बभुः ॥
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स | म | मा | प | न्न | स | त्त्वा | स्ता |
रे | जु | रा | पा | ण्डु | र | त्वि | षः |
अ | न्त | र्ग | त | फ | ला | र | म्भाः |
स | स्या | ना | मि | व | सं | प | दः |