सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
हेमपात्रेति॥ आद्यस्य पुंसो विष्णोरनुप्रवेशादधिष्ठानाद्धेतोस्तेन दिव्यपुरुषेणापि दुर्वहम्। चतुर्दशभुवनोदरस्य भगवतो हरेरतिगरीयस्त्वाद्वोढुमशक्यम्। हेमपात्रगतं पयसि पक्वं चरुं पयश्चरुं पायसान्नं दोर्भ्यामादधानो वहन्। अनल्पाग्निभिरूष्मपक्व ओदनश्चरुः
इति याज्ञिकाः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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हे | म | पा | त्र | ग | तं | दो | र्भ्या |
मा | द | धा | नः | प | य | श्च | रुम् |
अ | नु | प्र | वे | शा | दा | द्य | स्य |
पुं | स | स्ते | ना | पि | दु | र्व | हम् |