ऋत्विग्दधऋक्-
(अष्टाध्यायी ३.२.५९ ) इत्यादिना क्विबन्तो निपातः। जितात्मानो जितान्तःकरणाः सन्तः संतानकाङ्क्षिणः पुत्रार्थिनस्तस्य दशरथस्य पुत्रीयां पुत्रनिमित्ताम्। पुत्राच्छ च
(अष्टाध्यायी ५.१.४० ) इति छप्रत्ययः। इष्टिं यागमारेभिरे प्रचकमिरे ॥
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ऋ | ष्य | श्रृ | ङ्गा | द | य | स्त | स्य |
स | न्तः | स | न्ता | न | का | ङ्क्षि | णः |
आ | रे | भि | रे | जि | ता | त्मा | नः |
पु | त्री | या | मि | ष्टि | मृ | त्वि | जः |