एष वा अनृणो यः पुत्री
इति श्रुतेः। पितॄणामृणनिर्मुक्तिकारणम्। सद्यः शोक एव तमस्तदपहन्तीति शोकतमोपहम्। अत्रअभयंकर
इतिवदुपपदेऽपि तदन्तविधिमाश्रित्य अपे क्लेशतमसोः
(अष्टाध्यायी ३.२.५० ) इति डप्रत्ययः। सुताभिधानं सुताख्यं ज्योतिर्नोपलेमे न प्राप च ॥
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न | चो | प | ले | भे | पू | र्वे | षा |
मृ | ण | नि | र्मो | क्ष | सा | ध | नम् |
सु | ता | भि | धा | नं | स | ज्यो | तिः |
स | द्यः | शो | क | त | मो | प | हम् |