वधूर्जाया स्नुषा चैव
इत्यमरः। अदृष्टा सदृश्यनुरूपा प्रजा येन तं मां सद्वीपापि। रत्नानि सूयत इति रत्नसूरपि। सत्सूद्विष-
(अष्टाध्यायी ३.२.६१ ) इत्यादिना क्विप्। मेदिनी नावति न प्रीणाति। अव
धातू रक्षणगति प्रीत्याद्यर्थेषूपदेशादत्र प्रीणने। रत्नसूरपि
इत्यनेन सर्वरत्नेभ्यः पुत्ररत्नमेव श्लाघ्यमिति सूचितम्॥
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किं | तु | व | ध्वां | त | वै | त | स्या |
म | दृ | ष्ट | स | दृ | श | प्र | जम् |
न | मा | म | व | ति | स | द्वी | पा |
र | त्न | सू | र | पि | मे | दि | नी |