सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
सरसीष्विति॥ सरसीषु वीचिविक्षोभशीतलमूर्मिसंघटनेन शीतलं स्वनिःश्वासमनुकर्तुं शीलमस्येति स्वनिःश्वासानुकारिणम्। एतेन तयोरुत्कृष्टस्त्रीपुंसजातीयत्वमुक्तम्। अरविन्दानामामोदमुपजिघ्रन्तौ घ्राणेन गृह्णन्तौो ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | र | सी | ष्व | र | वि | न्दा | नां |
वी | चि | वि | क्षो | भ | शी | त | लम् |
आ | मो | द | मु | प | जि | घ्र | न्तौ |
स्व | निः | श्वा | सा | न | का | रि | णम् |