सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अथ वेति॥ अथ वा पक्षान्तरे। पूर्वैः सूरिभिः कविभिर्वाल्मीक्यादिभिः कृतवाग्द्वारे कृतं रामायणादिप्रबन्धरूपा या वाक् सैव द्वारं प्रवेशो यस्य तस्मिन्। अस्मिन् सूर्यप्रभवे वंशे कुले। जन्मनैकलक्षणः संतानो वंशः। वज्रेण मणिवेधकसूचीविशेषण। वज्रं त्वस्त्त्री कुलिशशस्त्त्रयोः। मणिवेधे रत्नभेदे
इति केशवः। समुत्कीर्णे विद्धे मणौ रत्ने सूत्रस्येव मे मम गतिः संचारोऽस्ति। वर्णनीये रघुवंशे मम वाक्प्रसरोऽस्तीत्यर्थः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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अ | थ | वा | कृ | त | वा | ग्द्वा | रे |
वं | शे | ऽस्मि | न्पू | र्व | सू | रि | भिः |
म | णौ | व | ज्र | स | मु | त्की | र्णे |
सू | त्र | स्ये | वा | स्ति | मे | ग | तिः |