छिन्द्याद्बाहुमपि दुष्टमात्मः
इति न्यायात्। त्याज्य आसीत्। तस्य शिष्ट एव बन्धुर्दुष्ट एव शत्रुरित्यर्थः ॥
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द्वे | ष्यो | ऽपि | सं | म | तः | शि | ष्ट |
स्त | स्या | र्त | स्य | य | थौ | ष | धम् |
त्या | ज्यो | दु | ष्टः | प्रि | यो | ऽप्या | सी |
द | ङ्गु | ली | वो | र | ग | क्ष | ता |