सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
सशोणितैरिति॥ संप्रति राघवेण रघुपुत्रेण। पूर्वं रघुणेति भावः। हे राजानः। वो युष्माकं यशो हृतं, जीवितं तु कृपया न हृतम्। न त्वशक्त्येति भावः। इत्येवंरूपा वर्णाः। एतदर्थप्रतिपादकं वाक्यमित्यर्थः। सशोणितैः शोणितदिग्धैः शिलीमुखाग्रैर्बाणाग्रैः साधनैस्तेनाजेन प्रयोजककर्त्रा। पार्थिवानां राज्ञां केतुषु ध्वजस्तम्भेषु निक्षेपिताः प्रयोज्यैरन्यैर्निवेशिताः लेखिता इत्यर्थः। क्षिपतेर्ण्यन्तात्कर्मणि क्तः ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|
स | शो | णि | तै | स्ते | न | शि | ली | मु | खा | ग्रै |
र्नि | क्षे | पि | ताः | के | तु | षु | पा | र्थि | वा | नाम् |
य | शो | हृ | तं | सं | प्र | ति | रा | घ | वे | ण |
न | जी | वि | तं | वः | कृ | प | ये | ति | व | र्णाः |