नित्यवीप्सयोः
(अष्टाध्यायी ८.१.४ ) इति वीप्सायां द्विर्वचनम्। नरेन्द्रमार्गे राजपथेऽट्टाख्यो गृहभेद इव। स्यादट्टः क्षौममस्त्रियाम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.२.१२ ) । विवर्णभावं विच्छायत्वम्। अट्टस्तु तमोवृतत्वम्। प्रपेदे ॥
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सं | चा | रि | णी | दी | प | शि | खे | व | रा | त्रौ |
यं | यं | व्य | ती | या | य | प | तिं | व | रा | सा |
न | रे | न्द्र | मा | र्गा | ट्ट | इ | व | प्र | पे | दे |
वि | व | र्ण | भा | वं | स | स | भू | मि | पा | लः |