सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तथेति॥ ना सोमश्चन्द्र इव नृसोमः। उपमितसमासः। सोम ओषधिचन्द्रयोः
इति शाश्वतः। पुरुषश्रेष्ठ इत्यर्थः। अस्त्रविदस्त्रज्ञः सोऽजः। तथा
इति। सोम उद्भवो यस्याः सा तस्याः सोमोद्भवायाः सरितो नर्मदायाः। रेवा तु नर्मदा सोमोद्भवा मेखलकन्यका
इत्यमरः। पवित्रं पय उपस्पृश्य पीत्वा। आचम्येत्यर्थः। उदङ्मुखः सन्निगृहीतऽशापान्निवर्तितशापात्। उपकृतादित्यर्थः। तस्मात् प्रियंवदादस्त्रमन्त्रं जग्राह ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त | थे | त्यु | प | स्पृ | श्य | प | यः | प | वि | त्रं |
सो | मो | द्भ | वा | याः | स | रि | तो | नृ | सो | मः |
उ | द | ङ्मु | खः | सो | ऽस्त्र | वि | द | स्त्र | म | न्त्रं |
ज | ग्रा | ह | त | स्मा | न्नि | गृ | ही | त | शा | पात् |