शालयः कलमाद्याश्च षष्टिकाद्याश्च पुंस्यमी
इत्यमरः (अमरकोशः २.९.२५ ) । तेऽप्यापादपद्मं पादपद्ममूलपर्यन्तं प्रणताः। पादो बुध्ने तुरीयांशशैलप्रत्यन्तपर्वताः
इति विश्वः। उत्खातप्रतिरोपिताश्च। रघुं फलैर्धनैः। अन्यत्र, -सस्यैः। संवर्धयामासुः। फलं फले धने बीजे निष्पत्तौ भोगलाभयोः। सस्ये
इति केशवः॥
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क | ल | मा | इ | व | ते | र | घुम् |
फ | लैः | सं | व | र्ध | या | मा | सु |
रु | त्खा | त | प्र | ति | रो | पि | ताः |