सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
संतानेति॥ सा पयस्विनी गौः। संतानं कामयत इति ह्यंतानकामः। कर्मण्यण्
(अष्टाध्यायी ३.२.१ ) तस्मै राज्ञे तथेति। काम्यत इति कामो वरः। कर्मार्थे घञप्रत्ययः। तं प्रतिश्रुत्य प्रतिज्ञाय, हे पुत्र!मदीयं पयः पत्रपुटे पत्रनिर्मिते पात्रे दुग्ध्वोपभुङ्क्ष्व पिब
इति तमादिदेशाज्ञापितवती। उपयुङ्क्ष्व
इति वा पाठः॥
छन्दः
इन्द्रवज्रा [११: ततजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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सं | ता | न | का | मा | य | त | थे | ति | का | मं |
रा | ज्ञे | प्र | ति | श्रु | त्य | प | य | स्वि | नी | सा |
दु | ग्ध्वा | प | यः | प | त्र | पु | टे | म | दी | यं |
पु | त्रो | प | भु | ङ्क्ष्वे | ति | त | मा | दि | दे | श |
त | त | ज | ग | ग |