राजहंसास्तु ते चञ्चुचरणैर्लोहितैः सिताः
इत्यमरः (अमरकोशः २.५.२६ ) । अन्यत्र कालागुरुणा दत्त पत्रा रचितमकरिकापत्रा भुवश्चन्दनकल्पिता भक्तिरिव। क्वचिच्छायासु विलीनैः स्थितैस्तमोभिः शबलीकृता कर्बुरीकृता चान्द्रमसी प्रभा चन्द्रिकेव। अन्यत्र रन्ध्रेष्वालक्ष्यनभःप्रदेशा शुभ्रा शरदभ्रलेखा शरन्मेघपङ्क्तिरिव। क्वचित्कृष्णोरगभूषणा भस्माङ्गरागेश्वरस्य तनुरिव विभाति। शेषो व्याख्यातः। कलापकम् ॥
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क्व | चि | त्प्र | भा | ले | पि | भि | रि | न्द्र | नी | लै |
र्मु | क्ता | म | यी | य | ष्टि | रि | वा | नु | वि | द्धा |
अ | न्य | त्र | मा | ला | सि | त | प | ङ्क | जा | ना |
मि | न्दी | व | रै | रु | त्ख | चि | ता | न्त | रे | व |