स्यादावर्तोऽम्भसां भ्रमः
इत्यमरः (अमरकोशः १.१०.६ ) । भ्रमता घनेनायं समुद्रो भूयः पुनरपि गिरिणा मन्दरेण प्रमथ्यमान इव भूयिष्ठमत्यन्तमाभाति ॥
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प्र | वृ | त्त | मा | त्रे | ण | प | यां | सि | पा | तु |
मा | व | र्त | वे | गा | द्भ्र | म | ता | घ | ने | न |
आ | भा | ति | भू | यि | ष्ठ | म | यं | स | मु | द्रः |
प्र | म | ध्य | मा | नो | गि | रि | णे | व | भू | यः |