सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तेनेति॥ रामस्तेन पथा सेतुमार्गेणोत्तीर्य, सागरमिति शेषः । पिङ्गलैः सुवर्णवर्णैरत एव द्वितीयं हेमप्राकारं कुर्वद्भिरिव स्थितैर्वानरैर्लङ्कां रोधयामास ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ते | नो | त्ती | र्य | प | था | ल | ङ्कां |
रो | ध | या | मा | स | पि | ङ्ग | लैः |
द्वि | ती | यं | हे | म | प्रा | का | रं |
कु | र्व | द्भि | रि | व | वा | न | रैः |