अङ्गुलीयकमूर्मिका
इत्यमरः (अमरकोशः २.६.१०८ ) । जिह्वामूलाङ्गुलेश्छः
(अष्टाध्यायी ४.३.६२ ) इति छप्रत्ययः। तस्यै जानक्यै ददौ। किंविधमङ्गुलीयम्? अनुष्णैः शीतलैस्तस्या आनन्दाश्रुबिन्दुभिः प्रत्युद्गतमिव स्थितम्। भर्त्रभिज्ञानदर्शनादानन्दबाष्पो जात इत्यर्थः ॥
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त | स्यै | भ | र्तु | र | भि | ज्ञा | न | |
म | ङ्गु | ली | यं | द | द | दौ | क | पिः |
प्र | त्यु | द्ग | त | मि | वा | नु | ष्णै | |
स्त | दा | न | न्दा | श्रु | बि | न्दु | भिः |